Valentine’s Day at Nizamuddin Centre

हमने ये तो जाना हमें क्या करना हैं, हमें क्या बनना हैं और हमें क्या पाना हैं, लेकिन ये सब हासिल करके भी क्या हम ख़ुद को संतुष्ट पाते हैं? 
यह अहसास वक़्त वक़्त पर होता रहता हैं! जब भी कभी मुझे मौक़ा मिलता हैं, फ़ील्ड पर जाने का !

कुछ इसी तरह का अहसास मुझे इस बार फिर से हुआ जब मुझे पहली बार मौक़ा मिला निज़ामुद्दीन सेंटर पर जाने का! 

यहाँ सभी उम्र के, धर्म के, जाति समुदाय के लोग एक साथ रहते है एक ही छत के नीचे एक परिवार की  तरह! जैसे ही मैंने सेंटर पर पहला क़दम रखा, तेज़ चिल्लाते हुए आवाज़ आइ “दीदी जी नमस्ते!” अभी हम बात हि कर रहे थे की पीछे से आवाज़ आती हैं, “आज ये कुछ केक जैसा लाई हैं, जो टी॰वी॰ पर आता हैं खाने वाला, दीदी ये हमारे लिए हैं क्या?” “हमने ये कभी नहीं खाया हमें दो ना!” वो अनजान थे की ये सब उनके लिये ही थे। जैसे ही उन्होंने वो कप्केक खाया मानो लगा की कोई सपना था उनका भी कुछ फ़ैन्सी सा खाने का और वो आज पूरा हो गया! उनकी मासूम आँखें कई सपने बुनती हैं, और बहुत कुछ ना कह के भी कह जाती हैं! 

सब कुछ पा कर भी हम आज इस भागती दौड़ती ज़िंदगी में ख़ुद को अधूरा और असंतुष्ट पाते हैं, वही एक तरफ़ ये ख़ूबसूरत चेहरे है जो कुछ ना होने के बाद भी रोज़ अपनी ख़ुशी की ओर ख़ुश रहने की वजह ढूँढ ही लेते हैं! इस दिन ये कप्केक इनके चेहरे पर ख़ुशी ले आईं! ज़िंदगी जीने के असली मायने तो इन मासूम बच्चों से सीखने को मिला, जब वक़्त जाने का आया तो इन्होंने एक और इच्छा जाहिर की “दीदी अगली बार पिज़्ज़ा खाना है वो एक लड़का कल पार्क में खा रहा रहा था हमें भी खाना हैं! “अभी जब पेपर ख़त्म होंगे तो हम पिज़्ज़ा पार्टी करेंगे है ना दीदी?”

ये छोटी छोटी ख़ुशियाँ ज़िंदगी की बड़ी से बड़ी जंग जितने का हौसला देती हैं! और ये हौसला मुझे आता हैं अपने इन प्यारे बच्चों से मिलने पर! आपको ख़ुशी क्या करने पर मिलती है?

मेरी ख़ुशी मेरे प्यारे बच्चों से मिलने पर मिलती हैं, और आपको?


About the Author

Monika loves to read in her spare time, and her favourite author is Marks Manson. If you don’t catch her reading, you might see her gorging on street food or napping.