“जश्न – ए – नौरोज़ हिंद होली है
रंग – ओ – रंग और बोली ठोली है”
– मीर तकी मीर
Holi भारत का एक प्रसिद्ध त्योहार है, जो आज विश्वभर में जाना जाने लगा है। यह प्रमुख रूप से भारत तथा नेपाल में मनाया जाता है।
होली, जो रंगों का पर्व है, वसंत ऋतु का अभिवादन करता है। रंग बिरंगे फूल खिलते हैं, नव जीवन का आगाज़ होता है।
प्रकृति के कोमल, और अतुलनीय संतुलन का एहसास होता है।
होली में खेले जाने वाले हर रंग का अपना मतलब है। लाल दर्शाता है प्रेम भाव, वहीं पीला रंग है हल्दी का, भगवान
कृष्ण का रंग नीला है। और इसी तरह हरा नई शुरुआत का प्रतीक है।
“होरी खेलूंगी कह कर बिस्मिल्लाह
नाम नबी की रतन चढ़ी, बूंद पड़ी इल्लल्लाह
रंग-रंगीली उही खिलावे, जो सखी होवे फ़ना-फ़ी-अल्लाह
होरी खेलूंगी कह कर बिस्मिल्लाह”
– बुल्ले शाह
वैसे तो होली हिन्दू धर्म का त्योहार है और बात सही भी है। आखिर होली हिरण्यकश्यप और होलिका की हार और
प्रहलाद की विजय का जश्न है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार भगवान कृष्ण राधा जी को होली पर वसंत में खिले हुए टेसू के
फूलों का रंग लगाते थे।
ये कथाएं जरूर धार्मिक हैं परंतु भारतीय एकता का प्रतीक हैं, यहां सभी धर्म के लोग होली साथ मिलकर ज़ोर शोर से
मनाते हैं। जात पात, सामाजिक स्तर, इस पर्व के उपलक्ष्य में ये सारे भेदभाव मिट जाते हैं और रह जाता है केवल प्रेम
भाव। इतिहास इस बात को बख़ूबी दर्शाता है- एक तरफ राजा अकबर का रंगों से प्रेम मशहूर है, वहीं दूसरी ओर तुजूक-
ए-जहांगीरी में राजा जहांगीर ने होली के दिन का बेहद प्रेम से वर्णन किया है, अनेक साधू, संत, बाबा, पीर, फकीर जैसे
बुल्ले शाह, निज़ाम उद दीन औलिया और अमीर ख़ुसरो के होली पर लेखन दिल को छू जाने वाले हैं।
विशेज़ और ब्लेसिंग्स नामक एनजीओ भी प्रेम भाव और एकता में यकीन रखते हुए रंगों और मिठाइयों के साथ इस पर्व
को जोर शोर से मनाता है।
होली का पर्व हमारे अंदर छुपे बच्चे को बाहर निकाल लाता है जिसे हम अपनी जिंदगी की कठिनाइयों और जटिलताओं
में कहीं दबा बैठते हैं। परन्तु बड़े दुख की बात है की रंगों के इस पर्व में अक्सर लोगों के मन की नीचता भी बाहर आ
जाती है। ऑर्गेनिक रंगों की जगह न छूटने वाले रंगों का इस्तेमाल करना, कीचड़ पोतना, राह चलते लोगों पे रंग/कीचड़
इत्यादि डाल कर उनको परेशान करना, केमिकल्स से भरे न छूटने वाले रंगों का इस्तेमाल कर प्रदूषण फैलाना। ऐसे ही
अनेक प्रकार के पकवान खा कर सड़कों पर कूड़ा फैलाना ईत्यादि। यह सब इस पर्व की भावनाओं के सख़्त ख़िलाफ़ है।
आज भी यदि हम चाहें तो प्रेम भाव के साथ ऑर्गेनिक रंगों से ईको फ्रेंडली होली मना कर प्राकृति की रक्षा करते हुए
होली मना सकते हैं।
होली हमें सीख देता है की जिंदगी चार दिन की है जिसमें ख़ुशी के लम्हे कभी-कभार ही आते हैं। तो हम क्यों आपसी
रंजिशों और मन-मुटाव में उनको खो दें।
तो इस होली प्रेम बाँटिए और अपने रिश्तों को और मजबूत बनाएँ।
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